Women misusing Section 376 as weapon, says Uttarakhand HC | आईपीसी सेक्शन 376 पर हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

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उत्तराखंड हाई कोर्ट ने एक रेप केस की सुनवाई के दौरान धारा-376 के गलत इस्तेमाल पर टिप्पणी की।

नैनीताल: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने कहा कि इन दिनों एक महिला और उसके पुरुष साथी के बीच मतभेद पैदा होने पर महिलाओं द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-376 के तहत रेप के लिए दंडित करने वाले कानून का एक हथियार की तरह दुरुपयोग किया जा रहा है। जस्टिस शरद कुमार शर्मा की सिंगल बेंच ने यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक महिला ने अपने पूर्व साथी के उससे शादी करने से इनकार करने के बाद उस पर रेप का आरोप लगाया था।

आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने भी बार-बार इस बात को दोहराया है कि एक पक्ष के शादी से मुकर जाने की स्थिति में वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंध को रेप नहीं करार दिया जा सकता। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि महिलाएं मतभेद पैदा होने सहित अन्य कारणों से इस कानून का अपने पुरुष साथियों के खिलाफ धड़ल्ले से दुरुपयोग कर रही हैं। जस्टिस शर्मा ने एक महिला को शादी का झांसा देकर उसके साथ कथित तौर पर यौन संबंध बनाने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए 5 जुलाई को यह टिप्पणी की।

आरोपी ने बाद में दूसरी महिला से शादी कर ली थी
महिला ने 30 जून 2020 को शिकायत दायर कर कहा था कि आरोपी मनोज कुमार आर्य उसके साथ 2005 से आपसी सहमति से यौन संबंध बना रहा था। शिकायत के मुताबिक, दोनों ने एक-दूसरे से वादा किया था कि जैसे ही उनमें से किसी एक को नौकरी मिल जाएगी, वे शादी कर लेंगे। शिकायत में कहा गया है कि शादी के वादे के तहत ही आरोपी और शिकायतकर्ता ने शारीरिक संबंध स्थापित किए थे, लेकिन आरोपी ने बाद में दूसरी महिला से शादी कर ली और इसके बाद भी उनका रिश्ता जारी रहा।

‘…शिकायतकर्ता ने स्वेच्छा से संबंध बनाए रखे थे’
हाई कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘आरोपी व्यक्ति के पहले से शादीशुदा होने की जानकारी होने के बाद भी जब शिकायतकर्ता ने स्वेच्छा से संबंध बनाए रखे थे, तो उसमें सहमति का तत्व खुद ही शामिल हो जाता है।’ कोर्ट ने कहा कि शादी के आश्वासन की सच्चाई की जांच आपसी सहमति से किसी संबंध में प्रवेश करने के प्रारंभिक चरण में की जानी चाहिए, न कि उसके बाद के चरणों में। अदालत ने कहा कि शुरुआती चरण उस सूरत में नहीं माना जा सकता है, जब रिश्ता 15 वर्ष लंबा चला हो और यहां तक कि आरोपी की शादी के बाद भी जारी रहा हो। (भाषा)

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