




देश के संपदा पर सरकार का नियंत्रण है: _नवीन कुमार
आज़ के दौर में अंबेडकर और भगत सिंह की प्रासंगिकता और बढ़ी है: _सुरेन्द्र चौधरी

बेतिया:_ डॉ. भीम राव अंबेडकर की जयंती समारोह बैरिया और तधवा नंदपुर में भाकपा-माले नेता सुनील कुमार राव ने संबोधित करते हुए कहा डॉक्टर अम्बेडकर का मानना था कि “मुट्ठी भर लोगों द्वारा बहुसंख्यक जनता का शोषण इसलिए संभव हो पा रहा है कि पैदावार के संसाधनों-जल, जंगल, जमीन, कल-कारखाना, खान-खदान, यातायात के संसाधन, स्कूल, अस्पताल, बैंक आदि पर समाज का मालिकाना नहीं है।“ मतलब साफ है की पैदावार के संसाधनों पर जिसका निजी मालिकाना होगा वही शोषण कर सकता है। यदि उत्पादन के साधनों का मालिकाना उसके हाथ में नहीं है तो चाहे वह किसी भी जाति का हो वह शोषण नहीं कर पाएगा। उन्होंने कहा आज भारत में संपदा का बड़ा हिस्सा कुछ धनपतियों और कॉर्पोरेट्स के हाथों में सिमट गया है। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत के शीर्ष 1% के पास देश की 40% संपत्ति है, यह असमानता डॉ. अंबेडकर के उस विचार को सही ठहराती है कि संसाधनों पर निजी मालिकाना शोषण को जन्म देता है। निजीकरण के कारण सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां बिक रही हैं, जिससे रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं और बेरोजगारी बढ़ रही है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के 2005 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में बेरोजगारी दर 8.7% थी और अप्रैल 2020 में 23.5% थी, जो भारत के इतिहास में सबसे अधिक थी। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में निजीकरण के कारण ये सेवाएं गरीब और वंचित वर्गों के लिए महंगी और दुर्गम हो गई हैं। डॉ. अंबेडकर का मानना था कि इन सेवाओं पर समाज का मालिकाना होना चाहिए, ताकि सभी को समान अवसर मिलेगा। कार्यक्रम को भाकपा-माले नेता सह मुखिया महासंघ के प्रखंड अध्यक्ष नवीन कुमार ने संबोधित करते हुए कहा भारत में निजीकरण के कारण सार्वजनिक संपत्ति कुछ हाथों में सिमट रही है, जिससे आर्थिक और सामाजिक असमानता बढ़ रही है। यह डॉ. अंबेडकर के उस विचार के खिलाफ है कि संसाधनों पर समाज का नियंत्रण होना चाहिए। आज के आर्थिक महामंदी के दौर में जिन-जिन देशों में निजी सेक्टर के मुकाबले सरकारी सेक्टर मजबूत रहे हैं, वही देश महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जुआखोरी, महामारी, प्राकृतिक आपदा, आतंक, अराजकता आदि समस्याओं को हल करने में बहुत हद तक सफल हैं और आगे बढ़ रहे हैं। चीन, वियतनाम, उत्तर कोरिया, क्यूबा आदि इसका जीता जागता उदाहरण है। माले नेता सुरेन्द्र चौधरी ने कहा उत्पादन के साधनों के समाजीकरण की बात भगतसिंह की पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन तथा मार्क्स के कम्युनिस्ट घोषणा पत्र में भी है। परन्तु ध्यान रहे वर्गसंघर्ष के बिना बाबा साहब का यह सपना काल्पनिक ही बना रह जायेगा। जितेन्द्र कुमार ने कहा आज जब देश में अम्बानी-अडानी जैसे पूंजीपतियों का साम्राज्य फलफूल रहा है और 62 करोड़ भारतीय 20 रुपये प्रतिदिन पर गुज़ारा करते हैं, 80 करोड़ लोग 5 किलो राशन पर गुजर-बसर करने को मजबूर हों और सरकारी संस्थाओं को बेचकर सरकार खुद पूँजीपतियों की तिजोरी भर रही है तब ऐसी परिस्थिति में अंबेडकर के “राजकीय समाजवाद” को एक विकल्प की तरह पेश करके सच्चे अम्बेडकर वादी अपना संघर्ष कर सकते थे। मगर पूरे भारत में आज तक किसी अम्बेडकरवादी ने इस मुद्दे पर कोई आन्दोलन नहीं चलाया है। अगर चलाते तो वे सच्चाई के करीब पहुंच जाते। तब यह समझ पाते कि मौजूदा समस्याओं से निपटने के लिए सिर्फ उत्पादन के संसाधनों का सरकारी करण होना ही जरूरी नहीं है बल्कि सरकार भी मेहनतकश लोगों की होनी चाहिए। कार्यक्रम में माले नेता मंगल चौधरी,अनील सिंह,निर्मल कुमार, मुखलाल मुखिया, वीरेंद्र पासवान आदि ने अपना-अपना विचार रखा।


