राजस्व पर्षद का आदेश ताक पर; प्रबंधक ने पत्र निकाल दिया अपने शाख पर

 

मामला बेतिया राज का, 

 

बेतिया, पश्चिमी चंपारण (ब्रजभूषण कुमार) :  राजस्व पर्षद का आदेश ताक पर, प्रबंधक ने पत्र निकाल दिया अपने शाख पर . जी हां , यह वाक्य सुनने में अटपटा जरूर लगेगा लेकिन यह हकीकत में प्रकाश में तब आया जब सिरसिया पंचायत के बिजोनिया भीकमपुर निवासी अनिल मिश्रा ने अध्यक्ष सह सदस्य राजस्व पर्षद, बिहार पटना को पत्र देकर बेतिया राज प्रबंधक के काली करतूत को उजागर करते हुए है लिखा है कि –

आदेश को ताख पर रखकर राज व्यवस्थापक द्वारा गंभीर आरोपों के ओरोपी चतुर्थ वर्ग कर्मी सुरेश राउत को राज के सभी महत्वपूर्ण विभागों का प्रभार का आदेश कर दिया . उच्च स्तरीय जाँच एवं कार्रवाई मांग करते हुए कहा है कि व्यवस्थापक के ज्ञापांक 172 दिनांक 18/04/2024 के द्वारा राजकर्मियों के विभागों का बंटवारा किया गया है।

इस ज्ञापांक में क्रमांक 08 पर सुरेश राउत का नाम है। इनके नाम के सामने विभागों का उल्लेख है। वे चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी हैं, वे गंभीर आरोपों के आरोपी है तथा भवदीय आदेश के आलोक में एक साल पहले उनका समायोजन चतुर्थ वर्गीय गार्डेन पिउन पर किया गया है। साथ उन्हें कोई महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी दिए जाने से मना कर, दिया गया है। परन्तु राज व्यवस्थापक और सुरेश राउत में कौन सी डील हुई कि व्यवस्थापक ने राउत को सभी महत्वपूर्ण विभाग सौंप दिया।

यह गंभीर जॉच का विषय है। राउत के विरूद्ध जो प्रमाणिक तथ्य है, उसे यहाँ क्रमवार उल्लेखित किया जा रहा है :- राजस्व पर्षद बिहार पटना के ज्ञापांक 03/बेतिया राज/31/2016 (पार्ट)-765 पटना दिनांक 07/07/2023 सी०डब्ल्यू० जे०सी० संख्या 0611/2016 में पटना उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के अनुपालन से संबंधित है।

इस आदेश के तहत राजस्व पर्षद ने सुनवाई के पश्चात् पारित आदेश में कहा है कि सुरेश राउत बेतिया राज के तत्कालीन गार्डेन पिउन (समूह ‘घ’) के कर्मी को बेतिया राज कार्यालय के आदेश 29 दिनांक 21/03/2002 द्वारा समूह ‘ग’ (प्रोन्नति के पद) तौजी नवीस पद पर समायोजित किया गया, जो नियमानुकूल नहीं है। उनके मूल पद गार्डेन पिउन पर नियमित कर नियमानुसार वेतनादि के भुगतान का ओदश दिया जाता है।

राजस्व पर्षद के इतने महत्त्वपूर्ण फैसले को नजर अंदाज कर राउत को सारे महत्त्वपूर्ण विभागों की जिम्मेवारी देने का दुस्साहस करना राज की सम्पत्ति की लूट के मास्टर प्लान की ओर संकेत कर रहा है। राउत को पूर्व प्रबंधक आर०एन० पांडा ने अवैध प्रोन्नति देकर कार्य लिया तथा लूट को अंजाम दिया गया। तब तत्कालीन जिला पदाधिकारी तथा राजस्व पर्षद के सचिव ने पांडा तथा राउत के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था। लेकिन राउत धन-बल के सहारे प्राथमिकी से बच निकले जबकि पांडा के लिखाफ प्राथमिकी दर्ज हुई थी। जिला पदाधिकारी तथा राजस्व पर्षद राजस्व पर्षद के पत्रांक सं० 03बे०राज-25/2012-697 दिनांक 25/05/2012 के द्वारा राउत को गंभीर आरोपों का आरोपी बताते हुए उन्हें महत्त्वपूर्ण प्रभारों से मुक्त कर दिया गया तथा कालान्तर में भी राज के नाजिर एवं रेंट लगान की वसूली, भूमि मकानों के लीज आदि से मुक्त कर दिया गया। राउत को न्यायालय का पैरवी क्लर्क का प्रभार दिया गया था।

न्यायालय अपर समाहर्त्ता पश्चिम चम्पारण, बेतिया के न्यायालय में जमाबंदी सृजन वाद सं0 21/16-17 में राउत की लगातार अनुपस्थिति के कारण विपक्षी के पक्ष में आदेश पारित हो गया। फलस्वरूप राज को अपनी जमीन से हाथ धोना पड़ा।

नये आदेश में राउत को उच्च न्यायालय में पैरवी का प्रभार दिया गया है, जो राज की सम्पत्ति को विरोधियों को सौंपने की तैयारी है। अपर समाहर्त्ता बेतिया के न्यायालय के आदेश की बिहार सरकार की मेडिकल कॉलेज की प्रस्तावित भूमि के कब्जाधारियों को तत्कालीन व्यवस्थापक तुलसी हजरा को मेल में लेकर राउत ने मामला उलझा दिया था।

जिला प्रशासन ने व्यवस्थापक हजरा तथा राउत के खिलाफ नगर थाना में काण्ड सं0 181/2009 दर्ज कराया।पटना उच्च न्यायालय में दाखिल रिट याचिका सीएडमन्यूजे०सी० सं0 3689/2005 में आदेश के आलोक में राजस्व पर्षद द्वारा पारित ओदश की गलत व्याख्या करा कर राउत की प्रोन्नति बरकरार रखने के आरोप में दो पूर्व व्यवस्थापकों भवानी प्रसाद तथा मृत्युंजय कुमार के विरूद्ध प्रपत्र ‘क’ के गठन के लिए सामान्य प्रशासन विभाग को पर्षद द्वारा अनुरोध किया गया। पर्षद के आदेश का व्यवस्थापक अविनाश कुमार के पदस्थापन के साथ ही उनके आवास के समक्ष सभी अत्याधुनिक सुविधाओं से लैश मकान निर्मित हुआ, जिसमें लगभग तीस लाख से अधिक राशि खर्च हुई।

जाहिर सी बात है कि राउत ने करोड़ों की कमाई की होगी, जिसमें व्यवस्थापक को भारी भरकम रकम दी होगी। फलस्वरूप उनकी नाक के नीचे राउत का भव्य महल खड़ा हो गया है। व्यवस्थापक आदेश में कर्मियों के संवर्ग शिथिल किया गया है कि समक्ष कर्मियों को महत्वपूर्ण कार्यों से वंचित कर राजस्व पर्षद के तमाम आदेशों को धत्ता बताते हुए सबसे बड़े लुटेरे को तमाम प्रभार सौंप दिया गया है। लेकिन ऐसा करते समय पूर्व के व्यवस्थापकों पर गिरी गाज को भी नजर अंदाज किया गया है। लेकिन वास्तव में यह राज के सर्वनाश का आदेश है।

इस मामला को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं जोरों पर की प्रबंधक जब से आए हैं तब से चहूओर अतिक्रमण जारी है। जबकि राजस्व पर्षद ने इन्हें राज के व्यवस्था को व्यवस्थित करने के लिए इनकी पदस्थापना की है। लेकिन वर्तमान समय में सब उल्टा होता दिख रहा है।

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