हरिमोहन झा मैथिली साहित्य के सर्वाधिक पठनीय साहित्यकार : प्रो दमन

 

**मैथिली विभाग में साहित्यकार हरिमोहन झा की जयंती मनाई गई**

 

दरभंगा (नंदू ठाकुर) :  मैथिली साहित्य के सर्वाधिक पठनीय साहित्यकारों में प्रो हरिमोहन झा का नाम प्रमुख है। कन्यादान हो या दुरागमन, प्रणम्य देवता हो या रंगशाला,चर्चरी हो या एकादशी ,खट्टर ककाक तरंग हो या जीवन -यात्रा ये सभी पुस्तकों के साथ हरिमोहन बाबू आज भी पाठकों के बीच जीवंत हैं। हरिमोहन झा की लोकप्रियता का आलम यह है कि उनकी रचनाओं के आस्वादन के लिए लोग मैथिली भाषा सीखते थे। तत्कालीन मैथिल समाज को अपनी लेखनी के माध्यम से साक्षात कराने वाले एक मात्र चर्चित और लोकप्रिय लेखक हरिमोहन झा ही हैं। उक्त बातें प्रो हरिमोहन झा जयंती के अवसर पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के मैथिली विभाग में अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो दमन कुमार झा ने कहीं। प्रो झा ने कहा की हरिमोहन झा को मैथिल समाज की बारीक समझ थी। उनका संपूर्ण साहित्य मिथिला के लोक बिंब से उपजा है। उनके एक- एक पात्र , एक- एक चित्र यथार्थ और लोक जीवन की जीवंतता के साथ उकेरे गए हैं। हास्य की फुलझरी से भींगो कर व्यंग्य की तीक्ष्ण बाण से सतत सतर्क करने का कार्य प्रो हरिमोहन झा ने किया है ।
प्रो हरिमोहन झा को स्मरण करते हुए विभागीय वरिष्ठ शिक्षक प्रो अशोक कुमार मेहता ने कहा कि वे दर्शनशास्त्र के विद्वान थे, लेकिन मैथिली गद्य साहित्य के मजबूत स्तम्भ भी रहे। उनकी सर्जन -यात्रा ने मैथिली गद्य साहित्य के इतिहास में क्रांति लाने का कार्य किया। इनसे पूर्व कथा ,उपन्यास लिखने की परंपरा थी,किन्तु उनमें वह बात नहीं थी जो खासियत हरिमोहन झा के साहित्य में मिलती है। हरिमोहन झा ने कथा उपन्यास की लेखन -दृष्टि को बदला। उनकी वर्णनात्मक शैली में की गई रचना उनकी विलक्षणता का द्योतक है। इनसे पहले इस शैली में लिखने वाले न के बराबर थे। इन्हें मैथिली साहित्य में कथा व उपन्यास लेखन शैली में क्रांति लाने का श्रेय भी है।
प्रो हरिमोहन झा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए डॉ अभिलाषा कुमारी ने कहा कि प्रो झा से हम लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने जो कुछ लिखा वह आज के परिप्रेक्ष्य में भी प्रासंगिक है। आज भी हम और हमारा समाज उन सवालों से मुक्त नहीं हुआ है। ऐसे विरल साहित्यकार को केवल एक दिन स्मरण कर लेने से हम अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकते हैं, उनकी लेखन दृष्टि को सतत अपने जीवन में उतारने की आवश्यकता है। डॉ सुनीता ने हरिमोहन झा के कृतित्व की भी विशद चर्चा की। विभागीय शिक्षक डॉ सुरेश पासवान ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शोध की कई संभावनाओं की तलाश इनके साहित्य में बिखरे पड़े हैं। ऐसे में शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों को उनके साहित्य को पढ़ना लाभप्रद होगा।
इस अवसर पर शोधर्थियों द्वारा हरिमोहन झा के साहित्य के विभिन्न आयामों पर चर्चा प्रस्तुत की गई।आरम्भ में शालिनी ने हरिमोहन झा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला वहीं गुंजन कुमारी और भोगेन्द्र प्रसाद ने हरिमोहन झा के चर्चित उपन्यास ‘कन्यादान’ की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। शिवम कुमार, नेहा, वन्दना, मिथलेश, राजनाथ,शीला कुमारी, हरेराम ने हरिमोहन झा जैसे महापुरुषों से बार -बार साक्षात होने की बात कही और हरिमोहन झा के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी शालिनी कुमारी ने किया। डॉ सुरेश पासवान ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

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