दरभंगा (ब्यूरो रिपोर्ट) : जानकी नवमीं के अवसर पर रामायण में जानकी विषय पर संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में गुरुवार को आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय ने कहा कि जानकी का चरित्र निर्मल व निष्कलंक था। वे निष्पाप थीं। आज के संदर्भ में भी उनके जीवन चरित्र की व्यापकता समाज के लिए अनुकरणीय है। उनका पूरा जीवन आज भी आदर्श बना हुआ है। इसी कड़ी में उन्होंने कहा कि सनातन धर्म ही एक राष्ट्र की अवधारणा को मजबूत करता है।
वहीं संगोष्ठी के मुख्य वक्ता जगतगुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट के कुलपति प्रो0 शिशिर कुमार पांडेय ने कहा कि जानकी के कारण ही राम महान बन पाए। माँ जानकी अष्ट सिद्धि व नौ निधि की दातृ थी। उन्होंने विभिन्न रामायणों में वर्णित जानकी के जीवन दर्शन को बताया।
प्रस्ताविक उद्बोधन करते हुए प्रो0 सुरेश्वर झा ने कहा कि राम चरित्र वर्णन से सम्बंधित साहित्यों में जानकी का चरित्र वर्णन है। जानकी को मिथिला को मोक्ष भूमि बनाने वाली सीता कहा गया है। कहा गया कि मृत्यु के समय जो मिथिला भूमि को स्पर्श करे , वह मोक्ष को प्राप्त करेंगे। उन्होंने कहा कि विभिन्न रामायणों में इस तरह की चर्चा है।
वहीं,सम्मानित अतिथि प्रतिकुलपति प्रो0 सिद्धार्थ शंकर सिंह ने कहा कि रामायण में जानकी का मतलब है राम के आयन में जानकी का चरित्र। उन्होंने कहा कि राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है लेकिन जानकी किसी मामले में उनसे कम नहीं थीं। आज भी जानकी दबी कुचली महिलाओं के स्वाबलंबन व सशक्तिकरण की प्रतिबिम्ब हैं। आधी आबादी को उनसे प्रेरणा लेकर अपनी स्मिता व पहचान को बुलंद करना चाहिए। उन्होंने मिथिला में जानकी पर चर्चा करने के लिए कुलपति प्रो0 पाण्डेय के प्रति भी आभार व्यक्त किया।
इसी क्रम में सारस्वत अतिथि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त मानविकी संकाय के अध्यक्ष प्रो0 प्रभाकर पाठक ने कहा कि सीता व राम के जीवन चरित्र को अलग अलग कर नही देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि जा मतलब जानो, न मतलब नमन करे तथा की मतलब कीर्तन करो। उन्होंने विस्तार से राम व जानकी के बारे में बताया। वहीं विशिष्ट अतिथि डीएमसीएच की अधीक्षक डा0 अलका झा ने कहा कि जनकी का स्वयं निर्णय लेने की क्षमता व दृढ़ शक्ति हमें हमेशा प्रेरणा देती है। निष्ठा, साहस, पवित्रता व कर्तव्य निर्वहनता ही जानकी को महान बनाया। सामाजिक तनाव व दबाव को कम करने के लिए जानकी का चरित्र अनुकरणीय है।
उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि डॉ झा ने कई उदाहरणों के जरिये जानकी को आदर्श बताते हुए विस्तार से चर्चा की। आईक्यूएसी व एनएसएस के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी का संचालन डॉ रामसेवक झा ने किया। अतिथियों का स्वागत डीएसडब्ल्यू डॉ शिवलोचन झा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन शिक्षा शास्त्र विभाग के निदेशक डॉ घनश्याम मिश्र ने किया।छात्रा नेहा, कल्पना, नेहा कुमारी,रजनी कुमारी द्वारा कुलगीत की प्रस्तुति की गई।
सूचना वैज्ञानिक डॉ नरोत्तम मिश्रा, एनएसएस समन्वयक डॉ सुधीर कुमार झा, डॉ त्रिलोक झा समेत सभी पदाधिकारी व कर्मी संगोष्ठी में उपस्थित थे।