दभंगा/ बिहार (नंदू ठाकुर):_प्रगतिवादी धारा के प्रमुख हस्ताक्षर एवं जन संस्कृति मंच के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष त्रिलोचन की जयंती के अवसर पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग द्वारा विभागाध्यक्ष प्रो उमेश कुमार की अध्यक्षता में संगोष्ठी का आयोजन हुआ। अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. उमेश कुमार ने कहा कि वास्तव में त्रिलोचन और नागार्जुन समानधर्मा हैं। त्रिलोचन की कविताओं में जीवन के जितने रंग आए हैं, पाठक उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। इसका कारण है कि वे जीवन में गहरे धंसे रचनाकार हैं। वे समाज के साथ कदम से कदम मिला कर चले रहे थे तो दूसरी तरफ विसंगतियों के प्रति आलोचनात्मक भी थे। यही साहित्यिक दृष्टि उन्हें प्रगतिवादी धारा के प्रमुख कवि के रूप में स्थापित करती है। वरीय सह–प्राचार्य डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने कहा कि कविता त्रिलोचन के यहां जीवन के भीतर से आती है। उनके बिना प्रगतिवादी काव्य–धारा की हर चर्चा अधूरी होगी। वे जनपद और जन के प्रति प्रतिबद्ध कवि हैं। समकालीन कविता में जो स्थान नागार्जुन की ‘हरिजन गाथा’, मुक्तिबोध की ‘अंधेरे में’ कविता का है, वही स्थान त्रिलोचन की ‘नगई महरा’ कविता का भी है। ये तीनों कविताएं अपने स्तर पर सभ्यता–समीक्षा है। त्रिलोचन वंचना, शोषण और दमन की तमाम दीवारों को ढाह देने का आह्वान करने वाले कवि हैं। उनकी यह पहचान हमें कभी विस्मृत नहीं करना चाहिए। त्रिलोचन हिन्दी में सोनेट विधा के पर्याय हैं। वे सोनेट के पुरस्कर्ता हैं। हिन्दी कविता में सोनेट को स्थापित करने में उनकी अविस्मरणीय भूमिका रही है।
विभाग के सह–प्राचार्य डॉ. आनंद प्रकाश गुप्ता ने अपने उद्बोधन में कहा कि त्रिलोचन यदि नई कविता के पुराधा कवि माने जाते हैं तो इसके पर्याप्त कारण हैं। उन्होंने स्वातंत्र्योत्तर कविता के फलक पर समाज की घटनाओं–परिघटनाओं को पूरी जीवंतता से प्रस्तुत किया। इस क्रम में वह सबकुछ उनकी कविताओं में दर्ज हो सका जो सामजिक परिस्थितियों को प्रभावित कर रहीं थीं। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि त्रिलोचन न केवल हिन्दी कविता की अनिवार्य जरूरत हैं बल्कि आधुनिक भारतीय चिंतनधारा के वे प्रमुख अंग हैं। डॉ. मंजरी खरे ने इस अवसर पर कहा कि त्रिलोचन गंवई संस्कृति को अपनी कविता में प्रमुखता से स्थान देते हैं। उनका रचनाकाल ठीक वही है जब साहित्यिक पटल पर ‘पूर्ण मानव’ या मनुष्य की पुनर्कल्पना की जा रही थी। इसमें कोई दो मत नहीं कि त्रिलोचन मनुष्यता को नए स्वर देते हैं। कार्यक्रम के संचालक शोधार्थी दुर्गानंद ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए बताया कि आलोचक बच्चन सिंह यदि त्रिलोचन को ग्रेस मार्क्स देकर बनाया गया प्रगतिवादी कवि कहते हैं तो उन्हें स्पष्ट करना चाहिए था, कविता के वे नीति–निर्धारक कौन हैं जो प्रगतिवादी–अप्रगतिवादी होने का निर्णय सुनाते हैं? यह अस्वीकार्य है कि जन सामान्य के प्रति जीवनपर्यंत समर्पित किसी कवि को प्रगतिवादी धारा से बेदखल कर दिया जाए। धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी बेबी कुमारी ने किया। मंगलवार को आयोजित संगोष्ठी में शोधार्थी समीर कुमार,निशा कुमारी, अमित कुमार, खुशी कुमारी, संध्या राय समेत अन्य छात्र–छात्राएं उपस्थित थे।