मनुष्य की गरिमा ही है मानवाधिकार का सार:- विधिक सेवा प्राधिकार, विनोद कु. तिवारी

 

अधिकार के साथ कर्तव्य का पालन कर ही 2047 तक भारत बनेगा विकसित राष्ट्र, बोले पूर्व कुलसचिव, डॉ. मुस्तफा कमाल अंसारी

कर्तव्य के बिना मानवाधिकार की बात करना होगा बेमानी, बोले प्रधानाचार्य प्रो. शंभू कुमार यादव

 

मानवाधिकारों की सैद्धांतिक चर्चा अब बौद्धिक विलासिता का रूप ले चुकी है, बोले प्रो. चंद्रभानु प्र. सिंह

स्वतंत्रता दी नहीं जाती, बल्कि उसे जीता जाता है और न्याय भी वसूला जाता है, बोले डॉ. मनोज कुमार

 

विश्व मानवाधिकार दिवस पर व्यवहार न्यायालय, मंडल कारा, पीजी विभाग सहित विभिन्न महाविद्यालयों में आयोजित हुआ कार्यक्रम

दरभंगा:-विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर व्यवहार न्यायालय, दरभंगा मंडल कारा व ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पीजी विभाग सहित विभिन्न महाविद्यालयों में कार्यक्रम का आयोजन हुआ।

विधिक सेवा प्राधिकार विनोद कुमार तिवारी ने अपने संबोधन में कहा कि मनुष्य की गरिमा ही मानवाधिकार का सार है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार की अवधारणा भारत के लिए कोई नई नहीं है। हमारे सांस्कृतिक इतिहास में प्राचीन काल में भी मानव के अधिकारों को संरक्षित किया जाता था।

जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने कहा कि हमारे संविधान में इसे स्वतंत्रता, समानता आदि के रुप में सर्वोपरि स्थान प्राप्त है। एडीजे प्रथम श्री रमाकांत ने कहा कि हमें अपने साथ-साथ दूसरों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए भी कार्य करना चाहिए।

दूसरी ओर मंडल कारा में कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव रंजन देव ने कहा कि मानवाधिकार के तहत काराधीन बंदियों के अधिकारों की सुरक्षा हेतु भी नियम बनाए गए हैं।

कार्यक्रम में चीफ लीगल एड डिफेंस काउंसिल प्रकाशस्वरूप सिन्हा ने गिरफ्तार व्यक्तियों के अधिकार, महिला एवं पुरुष बंदियों के अधिकार, मुफ्त विधिक सेवा के बारे में विस्तार से बताया।

मानवाधिकार दिवस के अवसर पर उप निदेशक जन संपर्क सत्येंद्र प्रसाद द्वारा सूचना भवन दरभंगा में मानवाधिकार के संबंध में शपथ दिलाई गई।

वहीं एम. के. कॉलेज में बतौर मुख्य अतिथि सह मुख्य वक्ता मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव डॉ. मुस्तफा कमाल अंसारी ने कहा कि आज विश्व मानवाधिकार दिवस है। मानवाधिकार शब्द का चर्चा करते ही जेहन में सबसे बड़ी शब्द आती है न्याय। बतौर मानव हर किसी को न्याय का जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त है और न्याय की हिफाजत के लिये ही मानवाधिकार की जरूरत महसूस हुई और मानवाधिकार आयोग का गठन हुआ। आज सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अधिकार के साथ-साथ कर्तव्य की भी बात होनी चाहिये। तब भविष्य में अधिकार के साथ कर्तव्य का पालन कर ही 2047 तक भारत बनेगा विकसित राष्ट्र।

एमएलएसएम कॉलेज में प्रधानाचार्य प्रो. शंभू कुमार यादव ने कहा कि आज अधिकार की बात सब करता है लेकिन लोग अक्सर अपना कर्तव्य भूल जाते हैं। अधिकार के साथ-साथ कर्तव्य का भी जिक्र है। मानवाधिकार में। कर्तव्य के बिना मानवाधिकार की बात करना बेमानी होगा। हमारे कर्तव्यों में प्रथम व्यक्तिगत, दूसरा सामाजिक कर्तव्य व तीसरा राष्ट्रीय कर्तव्य पर प्रकाश डालते हुए आगे कहा कि कर्तव्य तो और भी हैं लेकिन मूल रूप से यह तीन कर्तव्य सबसे महत्वपूर्ण है जो आपको व्यक्तिगत, सामाजिक व राष्ट्रीय कर्तव्यों का बोध कराकर मानवाधिकार को मजबूत करता है।

आगे उन्होंने भारतीय संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों के महत्व में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा, समानता की स्थापना, न्याय की प्राप्ति, व्यक्तिगत गरिमा की रक्षा, लोकतंत्र की मजबूती, व्यक्तिगत विकास, सामाजिक न्याय, राष्ट्रीय एकता, मानवाधिकारों की रक्षा व संविधान की प्रभावशीलता विषय पर एक-एक कर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि इन महत्वों के कारण, मौलिक अधिकार भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और व्यक्ति की गरिमा और मानवता की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभाग में विभागाध्यक्ष प्रो. मुनेश्वर यादव ने कहा, “वैश्विक शांति के लिए युवाओं में नवीनता, रचनात्मकता और मुखरता का होना जरूरी है। यह तभी संभव होगा, जब उनके मानवाधिकार सुनिश्चित किए जाएंगे।” बतौर मुख्य अतिथि सह मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने मानवाधिकारों के व्यावहारिक पक्ष पर बल देते हुए कहा, “मानवाधिकारों की सैद्धांतिक चर्चा अब बौद्धिक विलासिता का रूप ले चुकी है। हमें इसकी व्यवहारिकता पर ध्यान देना होगा, ताकि प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा को स्थापित किया जा सके।” मिथिला विश्वविद्यालय के उप-परीक्षा नियंत्रक (तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा) सह विभागीय प्राध्यापक डॉ. मनोज कुमार ने कहा कि “विश्वभर में युवा सांसदों की संख्या 2% से भी कम है, जो मानवाधिकारों में युवाओं की सहभागिता के उपेक्षित पहलू को दर्शाता है। स्वतंत्रता दी नहीं जाती, बल्कि उसे जीता जाता है और न्याय भी वसूला जाता है।”

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