श्रद्धा की प्रतिमूर्ति महावीर प्रसाद सिंह ‘माधव’।
बेतिया, पश्चिमी चंपारण, बिहार (ब्रजभूषण कुमार) :_होनहार वीरवान के होत चिकने पात ,,सवेरे होते ही सूर्य को देखकर दिन का अनुमान होता है उपरोक्त उक्तियाँ स्वर्गीय चाचा महावीर पर सटीक प्रमाणित होती है। शायद इसलिए इनका नाम महावीर रखा गया होगा। ये वास्तव में महावीर हैं। जिस काम की कल्पना की, खाका बनाया और सफलता प्राप्त कर ही दम लेते रहे हैं। पीछे मुड़कर कभी देखा नहीं कि इनके पीछे कितने लोग साथ देने वाले हैं। इनके कार्य को देखकर बुढे और जवान तक जुड़े ।
सभी साथ देते हुए इनका मनोबल बढ़ते रहे हैं। उक्त बातें राजीव रंजन, सुधांशु, अधीक्षण अभियंता, पुण्य तिथि श्रद्धांजलि पुष्प अर्पण के दौरान कही।आगे उन्होंने ने कहा कि पटना जिला (वर्तमान नालन्दा जिला) के भूवापुर मृदाचक) में भरत बाबू प्रथम तारापुर थाना के हरपुर गाँव के पोखर पर आकर रुके थे। संभवत इनके जान पहचान का कोई परिवार था। वहाँ से नित्य सुवरे, आते थे जहाँ वर्तमान घर है । वियावान जगल को काटकर एक स्थान चुनकर झोपड़ीनुमा बनाकर रहने लगे। पुन जंगल को काटकर जीतने के लिए जमीन बना जोतनेके लिए रहने लगे। इनके तीन संतान में लालती, बुलाकी एवं मीता। लालजी में दाह, दाहु से हर हरखू से जयमंगल और जयमंगल के द्वितीय पुत्र के रूप में महावीर बाबू का अवतरण 19/3/23 को ग्राम पो. पं. मझगाँय भाया हवेलली खड़गपुर जिला मुंगेर में हुआ। श्री महावीर प्रसाद सिंह माधव इनकी प्राथमीक शिक्षा ग्रामीण परिवेश में निम्न प्राथमिक पाठशाला कुबड़ा मझगांव के भदई गुरू जी की देख-रेख में हुई थी। उस समय इस इलाके में शिक्षा का घोर अभाव था। इनके पास 3-4 टोले के छात्र पढ़ने आते थे। प्रथम श्रेणी के उत्तीर्ण कर बनहारा मिडिल स्कूल में चतुर्थ वर्ग में नामांकन कराये। उस समय भारत क्या दुनिया के अधिकांश देशों पर अंग्रेजों का आधिपत्य था। कहा जाता था कि अंग्रेजो के राज में सूरज नहीं डूबता था। अंग्रेजों के कठोर शासन से भारतीय जनता तरस्न्त थी। सन् 1857 में आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी जिसे दबा दिया गया। पर स्वतंत्रता की चिंगारी शान्त नहीं हुई थी. सुलग रही थी। भारतीय जनता आजादी के लिए छटपटा रही थी। उस समय कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी थी जो सम्पूर्ण भारत में आजादी का मंत्र फैला रही थी। 8 अगस्त 1942 को गाँधी के ‘करो या मरों के आह्वान पर सम्पूर्ण देश में क्रान्ति की लहर फैल गई। बड़े-बड़े नेता जेल में बंद कर दिये गये। इनके चाचा बंधु बाबू 1930 ई० के स्वतंत्रता आन्दोलन की आग में कूदे हुए थे जो घर आने पर सारी कहानी कहते थे। खडकपुर के दक्षिण मुलुक टाँड में एक जंगलनुमा स्थान था जिनका नाम ‘पंचवदन स्थान था। क्रांतिकारियों का छिपने का अड्डा था। श्री महावीर प्रसाद सिंह माधव वहीं से रात दिन में भी गांव खड़गपुर बाजार, हाट में ले जाते थे। काली स्थान भी पर पीकेटिंग करना रातमे अंग्रेजोके विरूद्ध ,पोस्टर लिखकर दिवालों चिपकाया करते थे कालक्रम 15 अगस्त 1947 में देश आजाद हुआ आंदोलन समाप्त हुआ और आप पुनः पढ़ने लगे। मिडिल पास कर हाईस्कूल में दाखिला लिए। भारत आजाद हो गया। स्वतंत्रता की लहर में पुनः आंग्रेजी शिक्षा को लात मारकर राष्ट्रीय विद्यालय में प्रविष्ट किया आगे पुनः शिक्षक की ट्रेनिंग कर शिक्षक बने और आयु सीमा के अनुसार सेवानिवृत हो साहित्य साधना में स्वतंत्र रूप से तत्पर हो गये। मालती चाची 1996 में स्वर्ग स्रिधार गयी। इनकी दर्जनों पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है। दर्जनों प्रेस में एवं पचासों पाण्डुलिपियाँ घरो में है। अपनी संतानों को शिक्षित करने में लगे रहे। सबसे बड़े डा. जय प्रकाश सिंह द्वितीय विष्णुदेव सिंह, कनिष्ठ राजीव रंजन सुधांशु है। एक पुत्री आशा देवी है। ईश्वर इन्हें दीपांधु बनाये यही मेरी प्रार्थना है ताकि देश, समाज एवं साहित्य साधना करते रहें। इस मौके पर समस्त माधव परिवार मौजूद रहे।