पश्चिम चम्पारण के स्वतंत्रता सेनानियों में शुमार बिंदेश्वरी प्रसाद राव के 16 सितम्बर को पुण्य तिथि पर विशेष

 

आलेख –प्रभुराज नारायण राव

 

“मोरे चरखा के टूटे ना तान 

चरखवा चालू रहे।

महात्मा गांधी समधी बन बैठे

जार्ज पंचम दे लें कन्यादान

चरखवा चालू रहे।

बीर जवाहर बने सोहबोलिया 

लॉर्ड इर्विन बने उनके सार 

चरखवा चालू रहे।”

मोहन दास करमचंद गांधी के चम्पारण आगमन पर 24 अप्रैल 1917 को बाबू खेंहर राव के घर लौकरिया में रात्री विश्राम के दौरान खेंहर राव के पुत्र और भतीजों में से एक बिंदेश्वरी प्रसाद राव गांधी की सेवा में लगे रहते थे।उस समय उनकी उम्र 8 साल की थी। उनका जन्म 1909 में हुआ था।वे बचपन से ही ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी से देश को आजादी दिलाने के लिए शहादत दे रहे युवाओं तथा क्रांतिकारियों के गतिविधियों के संदर्भ में अपने बुजुर्गों से सुनते रहे थे ।उस दौर में नियमित रूप से सुबह में बैरिया कोठी के प्रबंधक तथा अंग्रेजों के दमनात्मक कारवाइयों की सूचनाएं उनके चाचा और पिता के पास आती ही रहती थी। बिंदेश्वरी बाबू बहुत ही गंभीरता से उसे सुनते थे। वे अपने शिक्षा पर ध्यान कम देकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के रणनीतियों पर ज्यादा ध्यान देने लगे थे ।

1932 में अंग्रेजों के खिलाफ प्रदर्शन करने के दौरान उनकी प्रथम गिरफ्तारी हुई।उन्हें मोतिहारी जेल में 1 माह 4 दिन रखने के बाद 10 फरवरी 1932 को पटना कैम्प जेल में भेज दिया गया । जहां 4 माह 18 दिन के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।

बिंदेश्वरी प्रसाद राव जेल की चारदीवारी से कहां डरने वाले थे।बाहर आने के बाद वे और मजबूती के साथ अंग्रेजी हुकूमत को देश से भगाने की रणनीतियों को आगे बढाने लगे।उन्हें नौजवानों का सहयोग मिलने लगा।इसी बीच 13 सितम्बर 1933 को दूसरी बार गिरफ्तार किए गए।जिन्हें मोतिहारी जेल से फिर पटना कैम्प जेल भेज दिया गया।जहां से 7 माह बाद उनकी रिहाई हुई।

स्वतंत्रता सेनानी बिंदेश्वरी प्रसाद राव अब एक चर्चित कांग्रेस नेता हो गए।अब वे नौतन की जवाबदेही के साथ ही चम्पारण जिला कांग्रेस कमिटी के सदस्य बनाए गए।अब उनका कार्य क्षेत्र भी बड़ा हो गया।मुख्य रुप से बेतिया अनुमंडल स्तर पर उनके कार्य का विस्तार हो गया।वे कांग्रेस के संगठन को मजबूत बनाने के कार्य में लग गए।

जब 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया।तो इनकी गतिविधि और तेज हो गई।अब पूरे देश में अंग्रेजों भारत छोड़ो नारों के साथ प्रदर्शन होने लगे।अगस्त क्रान्ति को सफल बनाने के लिए कांग्रेस ने 24 अगस्त 1942 को बेतिया में अंग्रेजों के खिलाफ प्रदर्शन करने का निर्णय लिया।गांव गांव में बैठकें होने लगी ।24 अगस्त 1942 को बेतिया चलने का नारा दिया जाने लगा।

18 अगस्त 1942 को बैरिया में अंग्रेजों के विरुद्ध एक विशाल आम सभा हुई।जिसे बिंदेश्वरी प्रसाद राव ने सम्बोधित करते हुए लोगों को बताया कि पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह छिड़ गया है। महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दे दिया है। देश में सैकड़ों जगह पर अंग्रेजी हुकूमत द्वारा गोलियां बरसाई गई है ।हजारों लोग शहीद हो चुके हैं ।11 अगस्त 1942 को पटने में अंग्रेजों की गोलियों से 7 नौजवान शहीद हो चुके हैं।हमें अपने देश को आजाद कराने के लिए जब तक रगों में एक-एक खतरा खून है ।हमें चुप नहीं रहना है ।देश को आजाद करा कर ही हमें दम लेना है ।उसी क्रम में 24 अगस्त को बेतिया चलने का आह्वान उन्होंने किया । आप भारी संख्या में बेतिया चले।

24 अगस्त 1942 को सुबह अपने गांव लौकरिया से आजादी के मतवालों की टोली लेकर बेतिया के लिए चल दिए।धीरे धीरे वह टोली एक विशाल कारवां का रुप धारण कर लिया।इनके साथ इंद्रासन राव, रोझा राउत जो बाद में स्वतंत्रता सेनानी बने,रामनारायण सिंह, जगन्नाथ पुरी,तपसी राउत,शिवमंगल सिंह, बुनी सिंह के नेतृत्व जुलूस चला । जिसमें बरगछिया के बिंदेश्वरी राउत, बैरिया के रघुनी बैठा आदि के साथ नौजवानों की टोली जुलूस में शामिल होती गई।

अब वह जुलूस बड़ी संख्या में कांग्रेस आश्रम कोतवाली चौक बेतिया पहुंच गया। जहां चारो तरफ से जत्थे का आना शूरु हो गया।12 बजे दिन में कांग्रेस आश्रम से आजादी के मतवालों का कारवां आगे बढ़ने लगा। मलाही से चंद्रकला देवी का जत्था आने के बाद वह कारवां बहुत भारी हो गया।यह कारवां राज स्कूल होते हुए आगे बढ़ने लगा।यह कारवां छोटा रमना की पूर्वी सीमा को पार करने के लिए आगे बढ़ना चाहा।तो वर्तमान सत्यनारायण पेट्रोल पंप के स्थान पर गोरों का मशीनगन गोली उगलने लगी।देखते देखते 8 आजादी के मतवाले शहीदों की कतार में अपना नाम शामिल कर लिए।सैकड़ों घायल हुए।

उसी शहीदों की कतार में शामिल 13 साल का एक लड़का था जगन्नाथ पुरी।जो बिंदेश्वरी प्रसाद राव के घर के पास का रहने वाला था।उसकी शव को देख बिंदेश्वरी प्रसाद राव विचलित हो गए।शहादत देने का जुनून उन पर भी सवार हो गया।वे आगे बढ़ने लगे।लेकिन कांग्रेस नेताओं ने उन्हें रोक लिया।साथियों के समझाने के बाद वे शांत हो शहीद जगन्नाथ पुरी पार्थिव शरीर को लेकर साथियों के साथ शहीद जगन्नाथ पुरी अमर रहे। शहीद जगन्नाथ पुरी तेरे अरमानों को मंजिल तक पहुंचाएंगे।गोरे अंग्रेज भारत छोड़ो आदि गर्म जोशी नारों के साथ अपने गांव लौकरिया की ओर चल दिए।उस शव यात्रा में हजारों की तादाद में लोग जुड़ते गए थे।

बिंदेश्वरी प्रसाद राव का काफिला देश से अंग्रेजों को भगाने की जज्बा के साथ आगे बढ़ता ही गया। 29 अक्टूबर 1942 को अंग्रेजों ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया।उन्हें मोतिहारी जेल भेज दिया गया। सश्रम कारावास के बाद 25 अगस्त 1943 को उन्हें मोतिहारी कारा से मुक्त किया गया।

बिंदेश्वरी प्रसाद राव को चौथी बार 16 दिसम्बर 1942 को फिर गिरफ्तार कर लिया गया।जिन्हें एक माह सत्रह दिन मोतिहारी जेल में रहने के बाद रिहा हो गए। वह आजीवन कांग्रेस में रहे और आम जनता से जुड़े रहे।उनकी मृत्यु 16 सितम्बर 1987 को उत्तराखंड में केदारधाम के रास्ते में गौरीकुंड में पहाड़ पर चढ़ने के क्रम में हृदयगति रुक जाने के कारण हो गया।उस समय उनके साथ स्वतंत्रता सेनानी रोझा राउत,उनकी धर्मपत्नी रामबदन देवी तथा बड़ी सुपुत्री सावित्री भी साथ थी।

आज उनकी 38 वीं पुण्य तिथि पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित किया जा रहा है।

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