पद्मश्री गोदावरी दत्ता के निधन पर विद्यापति सेवा संस्थान ने जताया शोक 

 

दरभंगा (नंदू ठाकुर):_पद्मश्री से सम्मानित मिथिला चित्रकला की प्रसिद्ध कलाकार गोदावरी दत्ता के निधन पर बुधवार को विद्यापति सेवा संस्थान की ओर से गहरी शोक संवेदना व्यक्त की गई। अपने शोक संदेश में संस्थान के महासचिव डा बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने कहा कि मिथिला की बेटी गोदावरी दत्ता ने मिथिला चित्रकला को देश-विदेश में पहचान दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। उनके निधन से मिथिला के कला एवं संस्कृति जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। उन्होंने कहा कि मिथिला चित्रकला के क्षेत्र में गोदावरी दत्त का स्थान काफी अहम था। वे पुरानी पीढ़ी की सबसे अनुभवी कलाकारों में से एक थी। परंपरावादी चित्रकारों की कलाकृतियों के बीच उनकी कलाकृतियां आसानी से पहचानी जा सकती हैं। उन्होंने अपने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे। मधुबनी के रांटी गांव में उपेन्द्र दत्त से उनकी शादी हुई थी। लेकिन कुछ सालों बाद ही पति ने दूसरी शादी कर ली थी। इसके बाद वह अपनी एकलौती संतान के साथ अपना जीवन व्यवतीत करती रहीं। वह अच्छी कलाकार होने के साथ ही सिंगल मदर की बेहतर उदाहरण थी।

मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा ने कहा कि वर्ष 2019 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित गोदावरी दत्त की प्रसिद्धि पौराणिक विषयों के चित्रण में मौलिकता के प्रयोग के लिए विशेष रूप से थी। वे आजीवन मिथिला चित्रकला के प्रयोग के नवीन प्रतीक का आधार परंपरागत कला को बनाती रही। वरिष्ठ साहित्यकार मणिकांत झा ने कहा कि वे मिथिला चित्रकला की निपुण साधिका थी। उन्होंने अपने हुनर से आजीवन मिथिला चित्रकला के क्षेत्र को सींचा और इसकी समृद्धि के लिए हरसंभव प्रयास किए। प्रो जीवकांत मिश्र ने कहा कि अपनी लंबी कलात्मक यात्रा में उन्होंने अनेक अभिनव प्रयोग किए। एक दार्शनिक कलाकार के रूप में वह हमेशा स्मृतिमे रहेंगी। मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने कहा कि अपने 93 साल के जीवन काल में उन्होंने हजारों चित्र बनाए, जिनमें समुद्र मंथन, त्रिशूल, कोहबर, कृष्ण, डमरू, चक्र, बासुकीनाग, अर्धनारीश्वर और बोधिवृक्ष सबसे चर्चित रहे। उनका मानना था कि कला पहले व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ती है, फिर व्यक्ति को समाज से। उनके लिए व्यक्ति और समाज अर्द्धनारीश्वर की तरह एक दूसरे पर आश्रित थे। शंभु नाथ झा ने कहा कि मिथिला चित्रकला को देश-विदेश में पहचान दिलाने में बड़ी भूमिका निभाने वाली गोदावरी दत्ता ने मिथिला चित्रकला को फर्श और दीवारों से उठाकर देश और विदेशों में पहचान दिलाने बड़ी भूमिका निभाई। लेखक रमेश ने कहा कि लगभग 50 हजार से अधिक लोगों को मिथिला चित्रकला सिखाने वाली गोदावरी दत्ता की कला से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी काफी प्रभावित हुई थीं। उनके निधन पर डा गणेश कांत झा, प्रो विजय कांत झा, विनोद कुमार झा, आशीष चौधरी, पुरुषोत्तम वत्स, मणि भूषण राजू, दुर्गानंद झा, नवल किशोर झा आदि ने भी शोक जताया।

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