दिनकर हिंदी साहित्य के अभिनवगुप्त – प्रो पाठक,
दरभंगा (ब्यूरो रिपोर्ट) : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती के अवसर पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय एवं नवस्थापित दिनकर पीठ के तत्वावधान में ‘राष्ट्रीय अस्मिता और दिनकर का साहित्य’ विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय कुलपति प्रो संजय कुमार चौधरी की अध्यक्षता में नरगौना परिसर ,स्थित जुबली हॉल में संपन्न हुआ। संगोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई।
दीप -प्रज्वलन व कुलगीत के बाद राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। उद्घाटन- सत्र की अध्यक्षता कर रहे पूर्व विभागाध्यक्ष एवं साहित्यकार प्रो अजीत कुमार वर्मा ने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि संसार की प्रत्येक जाति, समाज को साहित्य की आवश्यकता है, साहित्य मनुष्यत्व की रक्षा करता है। इसी रूप में दिनकर हमारी ज़रूरत हैं। उनके यहां सजावट है, लेकिन उस पर उनकी कला तिरोहित नहीं होती। उनकी कला मानवीय मूल्यों की पक्षधर है। इसी में भारत का भारतत्व निहित है। दिनकर ने राष्ट्र में खरोंचे भी देखीं और उससे आगे का भविष्य भी देखा। दिनकर की भूमिका द्रष्टा और स्रष्टा दोनों ही रूपों में उल्लेखनीय रही हैं।
स्वागत भाषण देते हुए।
विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश कुमार ने कहा कि दिनकर में राष्ट्रीयता के साथ- साथ सुकुमार कोमल भावनाएं भी मौजूद हैं। उनके यहां लोकपक्ष भी प्रचुर मात्रा में है। किसी रचनाकार को देखने की अपनी–अपनी दृष्टि हो सकती है लेकिन इससे इंकार नहीं किया सकता कि व्यापक मानवीय मूल्यों को दिनकर ने जीवनपर्यंत अपनी रचनाओं में स्थान दिया। उनके विराट व्यक्तिव पर हमने कई विद्वान वक्ताओं को सुना। बहुत सारी चीजें सामने आईं। दिनकर पीठ के इस आयोजन की सार्थकता इसी में है कि उनके साहित्य के अलक्षित पक्षों पर भी बड़े पाठक वर्ग का ध्यान आकर्षित कराया जा सके। इस उद्देश्य की पूर्ति में यह आयोजन अपनी भूमिका निभाएगा, ऐसी आशा है।
प्रथम सत्र में बीज -वक्तव्य देते हुए मानविकी संकायाध्यक्ष व विभाग के वरिष्ठ शिक्षक प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि विगत जून महीने में नागार्जुन पीठ तथा सितंबर में दिनकर पीठ की चिरप्रतीक्षित अभिलाषा पूरी हुई, इसमें हमारे कुलपति की उल्लेखनीय भूमिका है। उनके प्रति हम आभार प्रकट करते हैं।
प्रो सिंह ने आगे कहा कि भारतीय अस्मिता की तलाश भारतेंदु से शुरू होती है। क्योंकि इससे पहले दो सौ वर्षों तक श्रृंगारिक रचनाएं होती रहीं, उससे पूर्व भक्ति काव्य का युग था। आप देखें इन काव्य युगों में राष्ट्र अनुपस्थित है। नवजागरण काल में राष्ट्र की तलाश शुरू होती है। पहली बार भारतेंदु ने राष्ट्र की व्यथा पर साथ रोने के लिए आमंत्रित किया, यह भारतीयता की तलाश है। जो गांधी, तिलक, नेहरू के साथ–साथ दिनकर में नज़र आती है। दिनकर ने ‘संस्कृति के चार -अध्याय ‘ के द्वारा भारत की सामासिक संस्कृति का आख्यान प्रस्तुत किया। भारत की संस्कृति गतिमान है, स्थिर नहीं। दिनकर ने भारतीय संस्कृति को इस गतिशीलता के साथ देखा और बताया कि हिंदुत्व राष्ट्रवाद नहीं है। दिनकर का राष्ट्रवाद जनता का राष्ट्रवाद है। वे सच्चे अर्थों में जनता के कवि हैं। विश्वविद्यालय कुलसचिव डॉ. अजय कुमार पंडित ने हिंदी विभाग को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि दिनकर की कविताएं सामाजिक विसंगतियों को समाप्त करने के लिए लंबे समय से उत्प्रेरक का कार्य करती रही हैं। उन्होंने हमेशा सामाजिक विद्रूपताओं के खिलाफ लिखा। उर्वशी, कुरुक्षेत्र और रश्मिरथी जैसी रचनाओं से उन्होंने भारतीय साहित्य को समृद्ध किया।
मुख्य अतिथि पूर्व मानविकी संकायाध्यक्ष एवं विभागाध्यक्ष प्रो. प्रभाकर पाठक ने कहा कि दिनकर पीठ की स्थापना हर्ष का विषय है ,लेकिन इससे अधिक गौरव तब होगा जब निराला की साहित्य -साधना की तरह दिनकर की साहित्य – साधना पर सुदीर्घ, गहन व वैचारिक काम हो। मैं पीठ से जुड़े सभी विद्वानों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों से इस दिशा में काम करने का आग्रह करता हूं। दिनकर आग भी हैं और जल भी हैं। वो जब बोलते हैं ,तो राष्ट्र बोलता है। दिनकर की रचना विस्तार को देखकर उन्हें हिन्दी साहित्य का अभिनवगुप्त कहना गलत न होगा। दिनकर की अस्मिता राष्ट्र से अभिन्न रूप में जुड़ी हुई है।
उद्घाटन -सत्र का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विभाग के सह–प्राचार्य डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने कहा कि आज दिनकर का उपयोग सभी पक्ष के लोग करना चाहते हैं। किंतु जो लोग दिनकर में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, फासीवाद ढूंढते हैं उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी। दिनकर के यहां एकल राष्ट्रवाद नहीं है, वे अंतरराष्ट्रीयतावाद के निकट पहुंचते हैं।
संगोष्ठी के दूसरे -सत्र की अध्यक्षता करते हुए बेनीपुर डिग्री कॉलेज के प्रधानाचार्य और हिंदी के प्रो विजय कुमार ने कहा कि दिनकर प्रायः सभी रचनाओं में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में हैं। उनका इतिहास – बोध अद्भुत है, जो उन्हें राष्ट्रकवि के रूप में स्थापित करता है।दिनकर ने भारत की सामासिक संस्कृति को सुदृढ़ करते हुए राष्ट्रीय बोध को पहचान दिया। राष्ट्रीय एकता और सामासिक संस्कृति का कार्यभार केवल राजनीति पर ही नहीं, साहित्य और शिक्षा जगत के लिए भी आवश्यक है।
आमंत्रित वक्ता के तौर पर
मगध विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो. पीयूष कुमार सिन्हा ने कहा कि औपनिवेशिक इतिहासकारों ने भारतीय संस्कृति की प्रगतिगामी–रूढ़िवादी छवि प्रस्तुत की। दिनकर की इतिहास दृष्टि ऐसे औपनिवेशिक ऐतिहासिक आख्यानों को प्रश्नांकित करती है तथा भारतीय संस्कृति को मौलिक भारतीय नजरिए से देखने की प्रस्तावना उपलब्ध कराती है। साहित्य को समाज में निर्णायक भूमिका निभानी चाहिए। दिनकर के साहित्य में वह शक्ति है कि वर्तमान समय में निर्णायक भूमिका निभा सके।
विशिष्ट अतिथि के रूप में कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. रामप्रवेश रजक ने कहा कि रवींद्रनाथ ठाकुर ने भारतीय साहित्य को प्रभावित किया है। हिन्दी में पंत, निराला, महादेवी की तरह दिनकर पर भी उनका गहरा प्रभाव रहा है। दिनकर ने रवींद्र की कविताओं का अनुवाद भी किया है। रवींद्र से संवाद करते हुए वे अपनी काव्य चेतना निर्मित करते हैं, जिस पर स्वाधीनता आंदोलन का प्रभाव है। स्वदेश प्रायः सभी कवियों के समक्ष आता है लेकिन दिनकर ने स्वदेश को विलक्षण रूप में अभिव्यक्त किया है। हालांकि रवींद्र की विश्वचेतना के समीप होते हुए भी दिनकर का आग्रह राष्ट्रीय चेतना के प्रति अधिक है।
एमआरएम कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रो.श्यामचंद्र गुप्ता ने कहा कि राष्ट्र को विखंडित करने वाले तत्व आज भी समाज में विद्यमान हैं। उनसे संघर्ष करने में दिनकर का साहित्य हमें दिशा प्रदान करता है। सीएम साइंस कॉलेज के प्राध्यापक डॉ. दिनेश साह ने दिनकर की रचना कुरुक्षेत्र के माध्यम से विश्व में छाए युद्ध् के संकट पर विस्तृत चर्चा की।
प्रथम एवं द्वितीय सत्र का मंच- संचालन विभाग के सह–प्राचार्य डॉ आनंद प्रकाश गुप्ता तथा तीसरे -सत्र का संचालन डॉ. मंजरी खरे ने किया। सोमवार को आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी की स्मारिका का भी लोकार्पण किया गया।
इस अवसर पर वाणिज्य विभाग के प्रो हरे कृष्ण सिंह , मैथिली विभाग के अध्यक्ष प्रो. दमन कुमार झा, प्रो.अशोक कुमार मेहता, राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. मुनेश्वर यादव, भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो. अनुरंजन झा, डॉ. कामेश्वर पासवान,डॉ धर्मेंद्र दास, डॉ. विनिता कुमारी, डॉ. उमेश शर्मा, डॉ. हरिओम साह, डॉ. शंकर कुमार, अखिलेश कुमार राठौड़, डॉ आलोक राय, डॉ. गजेंद्र भारद्वाज, डॉ. मुन्ना साह, डॉ. वीरेंद्र कुमार दत्त, डॉ. ज्वालाचंद्र चौधरी, डॉ.अभिमन्यु बलराज, डॉ. प्रिया कुमारी आदि उपस्थित थे।
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में विभागीय शोधार्थी अभिषेक सिन्हा, सियाराम मुखिया, संध्या राय, दुर्गानंद ठाकुर, सरिता, पुष्पा, खुशबू, बबिता, खुशी, बेबी, कंचन, रोहित पटेल, अमित कुमार, जय प्रकाश, मलय नीरव, रूपक कुमार, सुभद्रा कुमारी, मनोज कुमार समेत बड़ी संख्या में प्रतिभागियों की उपस्थिति रही।