




दरभंगा:- रामायण और विष्णु पुराण में वर्णित माता अहिल्या का मंदिर दरभंगा जिला के जाले प्रखंड के कमतौल में स्थित है। इस जगह को अहिल्यास्थान के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान राम के चरणों की धूल से पत्थर बनी अहिल्या अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुई थीं। इसी स्थान पर माता अहिल्या का मंदिर बना है।
यह मंदिर देश के अन्य मंदिरों से अलग है। यहां सैकड़ों वर्षों से परंपरा चली आ रही है कि मुख्य पुजारी महिला ही होती हैं। वर्तमान में अवंतिका मिश्रा मुख्य पुजारी हैं। उनके सहयोग में पुरुष पंडित रहते हैं, लेकिन देवी अहिल्या को स्पर्श कर पूजा करने का अधिकार केवल महिला पुजारी को है। पुरुष पुजारी को स्पर्श पूजा की अनुमति नहीं है।

स्थानीय मान्यता है कि शरीर पर होने वाले मास्सा, जिसे आम बोलचाल में अहिला कहा जाता है, उससे पीड़ित लोग यहां सच्चे मन से मन्नत मांगते हैं तो वह ठीक हो जाता है। इसके बाद लोग यहां बैगन का भार चढ़ाते हैं। रामनवमी के अवसर पर यहां मेला भी लगता है।

जानकारी के अनुसार, गौतम ऋषि और उनकी पत्नी अहिल्या कमतौल के घने जंगलों में कुटिया बनाकर रहते थे। एक बार भगवान इंद्र के छल के कारण गौतम ऋषि ने अहिल्या को श्राप देकर पत्थर बना दिया था। जब भगवान राम धनुष यज्ञ में शामिल होने जनकपुर जा रहे थे, तब रास्ते में उन्होंने गौतम ऋषि का आश्रम देखा। विश्वामित्र से जानकारी मिलने पर राम ने अहिल्या को देखा। विश्वामित्र ने बताया कि अहिल्या का उद्धार केवल राम के चरणों की धूल से ही संभव है। राम ने जैसे ही पत्थर को अपने चरणों की धूल से स्पर्श किया, अहिल्या अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गईं।
इसके बाद इस स्थान का नाम अहिल्यास्थान पड़ा। यहीं माता अहिल्या के नाम पर मंदिर बनाया गया। यह मंदिर आज भी एक मड़वा के रूप में है। बगल में भगवान राम का भव्य मंदिर बना है। अहिल्यास्थान मंदिर में आज भी माता अहिल्या की कोई मूर्ति नहीं है। यहां मिट्टी से बनी एक पीड़ी की पूजा होती है। अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां जरूर स्थापित हैं।
महिला पुजारी अवंतिका मिश्रा ने बताया कि यह परंपरा आज भी पूरी श्रद्धा से निभाई जा रही है। स्थानीय पुजारी कामेश्वर मिश्रा ने कहा कि यह मंदिर आस्था और परंपरा का प्रतीक है। वही कमतौल थाना अध्यक्ष संजीव कुमार चौधरी ने बताया सभी जगह पूजा स्थल पर जवान तैनात कर दिए हैं और हम खुद निरीक्षण कर रहे हैं

