जन सुविधा के लिए पुरोहित उपलब्ध कराएगा संस्कृत विश्वविद्यालय

मकरन्द प्रकाश समेत अन्य पद्धतियों का कराया जाएगा पेटेंट 

 

ज्योतिष ओपीडी का भी होगा संचालन

 

आधुनिक ज्ञान विज्ञान संकाय का होगा नया सृजन

 

ढेरों व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की होगी शुरुआत

 

विद्वत परिषद की बैठक में लिए गए कई ऐतिहासिक फैसले

 

 

दरभंगा (नंदू ठाकुर):_शनिवार को संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में कुलपति प्रो0 लक्षमी निवास पांडेय की अध्यक्षता में आयोजित विद्वत परिषद की पहली बैठक कई मामलों में ऐतिहासिक रही। इसमें न सिर्फ छात्र हितों को लेकर दूरगामी फैसले लिए गए बल्कि मिथिला की परम्परा को और सुदृढ़ करते हुए लोक हितों का भी भरपूर ख्याल रखा गया। शायद यह व्यवस्था इतिहास में पहली होगी कि अब आमजनों को मांगलिक कार्यो व संस्कारों को सम्पादित करने के लिए संस्कृत विश्वविद्यालय ही विशेषज्ञ पुरोहित उपलब्ध कराएगा। इसके लिए अब इधर उधर भटकने की जरूरत नहीं है । सिर्फ आमजनों को मानदेय की राशि ही जमा करनी होगी। यह नई व्यवस्था बहुत जल्द मूर्त रूप लेने जा रही है। इतना ही नहीं,ज्योतिष विभाग के अधीन जन सुविधा के लिए एक वहीरंग विभाग(ओपीडी) भी संचालित होगा जिसे ज्योतिष ओपीडी कहा जायेगा। इस ओपीडी के अधीन संचालित सभी सुविधाओं समेत अन्य विन्दुओं का रोडमैप करीब करीब तैयार कर लिया गया है। यहां ज्योतिष परामर्श भी दिया जाएगा।

इसी क्रम में सर्वविदित है कि विश्वविद्यालय से प्रकाशित विश्वविद्यालय पंचांग का पूरे देश मे अपनी अलग पहचान व स्थान है। इस पंचांग के वैदिक आधार ‘ मकरन्द प्रकाश ‘ समेत अन्य ज्योतिष पद्धतियों को पेटेंट कराने का निर्णय लिया गया।

उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकान्त ने बताया कि विश्वविद्यालय में संचालित संकायों के अलावा एक नया संकाय ‘ आधुनिक ज्ञान विज्ञान संकाय ‘ भी स्थापित होगा। इसका क्रियान्वयन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार होगा और इसके स्तीत्व में आते ही स्नातकोत्तर डिप्लोमा समेत अन्य कई कोर्स स्वतः इस संकाय के अधीन आ जाएंगे।

इसके पूर्व विद्वत परिषद की 17.01.23 तथा 05.7.23 दिवसीय कार्यवाही को सम्पुष्ट करते हुए कार्यान्वयन प्रतिवेदन को भी पारित कर दिया गया। चार वर्षीय शास्त्री पाठ्यक्रम के प्रवेश अध्यादेश व परीक्षा विनियमावली पर भी चर्चा हुई। इसके लिए पाठ्यक्रम निर्माण समिति द्वारा तैयार तृतीय से अष्टम सेमेस्टर के लिए मसौदे पर सदन में खूब चर्चा हुई। परिषद के सचिव सह कुलसचिव प्रो0 ब्रजेशपति त्रिपाठी ने सभी शंकाओं व समस्याओं का हल निकाल दिया जिस पर सदन की सहमति रही। इस मामले में राजभवन के दिशा निर्देशों का पालन करने पर भी आम राय रही। प्रकाशन समिति में विद्वत परिषद से एक सदस्य मनोनीत करने लिए सदन ने कुलपति प्रो0 पांडेय को अधिकृत कर दिया। इसी तरह सम्बद्ध कालेजों में प्रधानाचार्यो व शिक्षकों की नियुक्ति व आम प्रोन्नति के लिए विषय विशेषज्ञों की सूची तैयार करने के प्रस्ताव पर निर्णय हुआ कि सभी संकायाध्यक्ष एक सप्ताह में अपने राज्य के व राज्य से बाहर के कम से कम पांच -पांच प्रोफेसर के नाम विश्वविद्यालय को उपलब्ध करायेंगे। इस सूची में एसटी, एससी, ओबीसी तथा महिला वर्ग के लोग आवश्यक रूप से शामिल रहेंगे।

 

इन पाठ्यक्रमों पर हुई चर्चा

 

बैठक में महत्वपूर्ण यह भी रहा कि अब विश्वविद्यालय में ढेर सारे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की शुरुआत होगी। सक्षम प्राधिकारों से हरी झंडी मिलते ही इसे लागू कर दिया जाएगा। सर्वसम्मति से निर्णय यह भी रहा कि स्ववित्तपोषित इन सभी पाठ्यक्रमों में नामांकन लेने वाले छात्रों को प्रारम्भिक संस्कृत पढ़ना अनिवार्य होगा। संस्कृत के प्रचार व प्रसार के लिए ऐसा निर्णय उपयुक्त माना गया।आधुनिक ज्ञान विज्ञान संकाय में आने वाले मुख्य पाठ्यक्रमों में पीजी डिप्लोमा इन मैनेजमेंट, मास कम्युनिकेशन एन्ड जर्नलिज्म, पीजीडीसीए, डिप्लोमा इन ट्रांसलेशन स्टडीज, भारतीय विधि शास्त्र (एलएलबी ), बीबीए बीसीए, एमलिस, एमबीए, एमसीए समेत अन्य करीब दर्जन भर कोर्स शामिल हैं। साथ ही विश्वविद्यालय में पहले से ही संचालित सर्टिफिकेट कोर्स भी जारी रहेगा।

 

संकायाधीन कोर्स इस तरह होंगे संचालित

 

पीआरओ ने बताया कि एक वर्षीय डिप्लोमा पौरोहित कर्मकांड कोर्स वेद संकाय के अधीन संचालित होगा। इसी तरह कुंडली निर्माण व वास्तु शास्त्र के साथ साथ वैदिक गणित ज्योतिष संकाय, स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रम पाली एवम प्राकृतिक के अलावा योग में एक वर्षीय डिप्लोमा दर्शन संकाय तथा स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर के हिन्दू स्टडीज पाठ्यक्रम पुराण संकाय के अधीन सम्पादित होंगे। कोर्सेज न लाईन व ऑफ लाईन दोनों हो सकता है। इस पर अंतिम निर्णय शेष है।

 

अन्य महत्वपूर्ण निर्णय इस प्रकार रहे

 

नामांकन शुल्क को लेकर एकरूपता व समरूपता लाने के लिए एक कमेटी गठन करने का निर्णय लिया गया। इस कमेटी के अध्यक्ष होंगे डीएसडब्ल्यू डॉ शिवलोचन झा एवं अन्य सदस्यों में सभी संकायाध्यक्षों को शामिल किया गया है। आमंत्रित सदस्य में ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ कुणाल कुमार झा को भी रखा गया है। सप्ताह भीतर इस कमेटी को शुल्क रचना कर विश्वविद्यालय को समर्पित करना है जिस पर प्रशासनिक निर्णय लिया जाएगा। वहीं, प्रवेश पत्र आदि में छात्रों को अब अपना नाम पता व अन्य जानकारी शुद्ध कराने के लिए विश्वविद्यालय का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा। सर्व सम्मति से सदन में निर्णय हुआ कि नई व्यवस्था में अब कालेजों के प्रधानाचार्य ही इसे एक समय सीमा के भीतर संशोधित कर पाएंगे। चर्चा के क्रम में प्रधानाचार्य डॉ अनिल कुमार ईश्वर ने सुझाया कि छात्रों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए प्रधानाचार्यों पर विशेष दबाव बनाने की जरुरत है। इन्होंने प्राईवेट छात्रों को भी प्रवेश व परीक्षा देने की वकालत की। इसी तरह डॉ रामसेवक झा ने भी नव सृजित पाठ्यक्रम पर अपना विचार रखा। ज्योतिष विभाग अध्यक्ष डॉ कुणाल कुमार झा, धर्मशास्त्र विभाग अध्यक्ष प्रो0 दिलीप कुमार झा, व्याकरण विभाग अध्यक्ष प्रो0 दयानाथ झा, इसी विभाग की सहायक प्रध्यापिका डॉ साधना शर्मा ने भी अपनी बातों को रखा। सदस्यों के सभी प्रश्नों का कुलसचिव प्रो0 त्रिपाठी ने अपने अनुभव व साक्ष्य प्रमाणों का हवाला देकर बखूबी हल निकाला। कुलपति प्रो0 पांडेय की दूरदर्शिता

तथा कुलसचिव प्रो0 त्रिपाठी की सूझबूझ व विषय वस्तु को सदन में स्पष्ट करने के तौर तरीके का सभी सदस्यों ने प्रशंसा की।

 

छात्र हित सर्वोपरि : कुलपति

 

पाठ्यक्रमों में भारतीय ज्ञान परम्परा का हो समावेश : प्रतिकुलपति

 

विद्वत परिषद की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो0 पांडेय ने कहा कि छात्र हित को सर्वोपरि रखा जाय। छात्र ही विश्वविद्यालय की रीढ़ है। इनकी समस्याओं को हल करने के लिए खासकर कालेजो को पहल करनी चाहिए। इससे उनकी परेशानी कम होगी और अनावश्यक इसके लिए उसे दौड़ धूप नहीं करनी होगी। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि शास्त्र परम्पराओं को भी सुदृढ़ करना है और नई शिक्षा नीति के तहत आधुनिक बहुविषयक शिक्षा को भी बढ़ाना है। उन्होंने फिर दोहराया कि संस्कृत को व्यवहार में लाकर ही हम इसकी भलाई कर सकते हैं। जन सामान्य तक इसे पहुंचाकर ही उचित सम्मान दिया जा सकता है। इससे दूर होने पर यह स्वतः दूर हो जाएगी। उन्होंने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर विशेष बल दिया। वहीं प्रतिकुलपति प्रो0 सिद्दार्थ शंकर सिंह ने कई विषयों को उठाते हुए पूर्व के निर्णयों पर सबाल भी खड़ा किया। उन्होंने कहा कि वैसे पाठ्यक्रम बनाएं जिससे समाज को सीधा लाभ मिले। साथ ही उन्होंने पाठ्यक्रमों में भारतीय ज्ञान परम्पराओं को समावेश करने की सलाह दी। विषय वस्तुओं में संस्कृत शास्त्रों की नीति व सूत्रों को स्थान देते हुए शास्त्रीय व्यवहार पक्षों को भी जगह देने की उन्होंने वकालत की। वहीं, सम्मानित अतिथि प्रो0 बोध कुमार झा ने सलाह दी कि कालेजों में छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया जा सकता है जो लगातार इन विषय पर नजर रखेगा। स्वागत भाषण देते हुए कुलसचिव प्रो0 पांडेय ने कहा कि उनकी यह पहली बैठक है। इसमें सभी सदस्यों का सहयोग सदन को अपेक्षित है।

बैठक में सभी विभागाध्यक्ष, संकायाध्यक्ष व सदस्य प्रधानाचार्य समेत आमंत्रित सदस्य मौजूद थे। धन्यवाद ज्ञापन डीन डॉ झा ने किया।

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