दरभंगा (नंदू ठाकुर):_15 सितंबर को संपूर्ण भारत में प्रतिवर्ष अभियन्ता दिवस (इंजीनियर्स डे) के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन भारत के महान अभियन्ता एवं भारतरत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्मदिन है।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम महिला प्रौद्योगिकी संस्थान, दरभंगा में आज देश के महान इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या के जन्म दिवस पर इंजीनियर्स दिवस बड़े ही उत्साह और गरिमा के साथ मनाया गया।
इस अवसर पर संस्थान के निदेशक प्रो. प्रेम मोहन मिश्रा ने कहा कि एम् विश्वेश्वरैया भारत के महान इंजिनियरों में से एक थे, इन्होंने ही आधुनिक भारत की रचना की और भारत को नया रूप दिया. उनकी दृष्टि और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में समर्पण भारत के लिए कुछ असाधारण योगदान दिया।
इस अवसर पर संस्थान के निदेशक प्रो. प्रेम मोहन मिश्रा ने कहा कि वे हमारे देश के पहले इंजीनियर थे जिन्होंने विभिन्न पुलों और कई अन्य परियोजनाओं के डिजाइन में योगदान दिया।विश्वेश्वरैया ने कृष्णा राज सागर बांध जैसी विशाल सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण करके भारत के कृषि क्षेत्र को नई ऊंचाइयां दी। उन्होंने जल विद्युत उत्पादन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अलावा, उन्होंने शहरों के नियोजन और शहरी विकास में भी अहम भूमिका निभाई। भारत सरकार ने उनके इसी प्रकार के असाधारण योगदान के लिए उन्हें १९५५में भारत रत्न से भी सम्मानित किया।
बालक विश्वेश्वरैया मात्र 14 साल के ही थे, जब उनके पिता का देहांत हो गया. पिता के मृत्यु के बाद परिवार की ज़िम्मेदारी विश्वेश्वरैया पर आ गई. पढाई में विश्वेश्वरैया शुरू से ही अच्छे थे, जिसके चलते उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ना शुरू कर दिया, साथ ही साथ अपनी पढाई भी करते रहे.सन 1880 में बंगलौर के सेंट्रल कॉलेज से उन्होंने बी.ए. की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की. विश्वेश्वरैया इंजीनियरिंग करना चाहते थे, मगर आर्थिक रूप से सक्षम न होने के कारण उनका इंजीनियरिंग करना मुश्किल था. उनकी प्रतिभा को देखते हुए उनके कॉलेज के प्रिंसिपल ने विश्वेश्वरैया को मैसूर के तत्कालीन दीवान रंगाचारलू से मिलवाया और विश्वेश्वरैया की इंजीनियरिंग की लगन को देखकर रंगाचारलू ने उनके लिए छात्रवृति(Scholarship) की व्यवस्था करदी. इसके बाद विश्वेश्वरैया ने पुणे के साइंस कॉलेज में प्रवेश लिया. उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग श्रेणी में सर्वोच्च अंक प्राप्त करते हुए 1883 में सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की.
उनका जीवन भावी पीढ़ी के छात्र छात्राओं को संदेश देता है कि लगन सच्ची हो तो मंज़िल मिल ही जाता है ।
101 की उम्र में 14 अप्रैल 1962 को विश्वेश्वरैया का निधन हो गया।
अपने संबोधन में प्रो. मिश्रा ने संस्थान के छात्रों को विश्वेश्वरैया के जीवनी एवम उनके उपलब्धियों से प्रेरित करते हुए कहा कि तकनीकी क्षेत्र में नवाचार और अनुसंधान की अत्यधिक आवश्यकता है, और युवा इंजीनियर इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
निदेशक महोदय ने सभी भावी इंजीनियरों और संस्थान के कर्मचारियों को आशीर्वाद दिया और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।
उन्होंने यह भी घोषणा की कि संस्थान में आगामी 16 अगस्त 2024 को ओजोन दिवस के उपलक्ष्य में एक क्विज़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा, जिसमें छात्रों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाएगा।
कार्यक्रम के अंत में प्रो. मिश्रा ने सभी उपस्थित लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक रहने और इंजीनियरिंग के माध्यम से समाज को बेहतर बनाने के लिए समर्पित रहने का संदेश दिया।